तेरे घर की पाक दरगाह |
तेरे घर की पाक दरगाह
दिल पसंद है या अल्लाह
उस में तेरे बंदगान
देखते नूर ओ प्यार की शान
मेरी जान कराहती है
तुझे देखना चाहती है
या मसीह रहीम पुर नूर
करम और फज़ल से मामूर
यहां भी है तेरा घर
तेरे नूर से जलवागर
जब हमारे दरमियान
तू दिखाता अपनी शान
गो गुनाह बहुतेरा है
दुख हो ग़म घनेरा है
तेरी कुरबत से रहमान
जान ओ तन भी है शादमान
क्या मुबारक और बश्शाश
तेरे घर में बूंद ओ वास
करते जो कि वे हर आन
सना करते खुश ज़ुबान
कूव्वत पाते सफ़र भर
ग़म की वादी गुज़र कर
और सैहून में हाजिर हो
देखते तेरे चिहरे को
वहां तक ख़ुदावन्दा
हो तू मेरा रहनुमा
तू है मेरा नूर ओ ढाल
मुझ कमजोर को नित संभाल
अपने बड़े फज़ल से
अपने पास भी जगह दे
तू है चश्मा बरकत का
मुझ पर उसकी ओस बरसा
Tere ghar kee paak daragaah |
Tere ghar kí pák dargáh
Dil-pasand hai yá Alláh;
Us men Tere bandagán
Dekhte núr o pyár kí shán.
Meri ján karáhti hai.
Tujhe dekhná chahti hai,
Yá Masih, rahim pur núr;
Karm o fazl se ma’múr.
Yahán bhí hai Terá ghar
Tere núr se jalwágar,
Jab hamáre darmiyán
Tú dikhátá apní shán.
Go gunah bahuterá hai,
Dukh o gam ghanera hai.
Teri qurbat se Rahmán,
Ján o tan bhí hain shádmán,
Kyá mubárak aur bashshásh
Tere ghar men búd o básh;
Karte jo ki wuh har án
Saná karte khush-zubán.
Quwwat páte safar bhar,
Gam kí wádí guzar kar;
Aur Saihún men házir ho,
Dekhte Tere chihre ko.
Wahán tak Khudáwanda,
Ho Tú merá rahnumá;
Tú hai merá núr o dhál
Mujh kamzor ko nit sambhál.
Apne bare fazl se
Apne pás hí jagah de.
Tú hai chashma barakat ká,
Mujh par us kí os barsá.