संतुष्टता की अभिवृत्ति :
मेरे लिये माप की डोरी मनभावने स्थान में पड़ी, और मेरा भाग मनभावना है॥ (भजन संहिता 16:6)
यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूं; क्योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्तोष करूं। (फिलिप्पियों 4:11)
श्रमिक की संतुष्टि :
परिश्रम करने वाला चाहे थोड़ा खाए, या बहुत, तौभी उसकी नींद सुखदाई होती है; परन्तु धनी के धन के बढ़ने के कारण उसको नींद नहीं आती। (सभोपदेशक 5:12)
और सिपाहियों ने भी उस से यह पूछा, हम क्या करें? उस ने उन से कहा, किसी पर उपद्रव न करना, और न झूठा दोष लगाना, और अपनी मजदूरी पर सन्तोष करना॥ (लूका 3:14)
धार्मिकता से संतुष्टि :
पर सन्तोष सहित भक्ति बड़ी कमाई है। और यदि हमारे पास खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर सन्तोष करना चाहिए। (1 तीमुथियुस 6:6,8)
संतुष्टि खुदा के द्वारा अनुमोदित :
तुम्हारा स्वभाव लोभरिहत हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर संतोष किया करो; क्योंकि उस ने आप ही कहा है, कि मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा। (इब्रानियों 13:5)
अधर्मियों की दयनीय स्थिति :
निश्चय तू उन्हें फिसलने वाले स्थानों में रखता है; और गिराकर सत्यानाश कर देता है। अहा, वे क्षण भर में कैसे उजड़ गए हैं! वे मिट गए, वे घबराते घबराते नाश हो गए हैं। (भजन संहिता 73:18,19)
परन्तु हाय तुम पर; जो धनवान हो, क्योंकि तुम अपनी शान्ति पा चुके। (लूका 6:24)